उज्जैन में छलकता है “अमृत” नेता और अधिकारी कर रहे “गृहण” जनता और मीडिया को समझा जाता है “असूर”
सिंहस्थ से लेकर हर बड़े काम से रखा जाता है दूर…
उमेश चौहान ✍🏻✍🏻
उज्जैन । शिव की नगरी उज्जैन में अनवरत अम्रत वर्षा होती है, लेकिन जिस तरह समुन्द्र मंथन से निकले अमृत को देवताओं ने पी लिया था ठीक उसी तरह उज्जैन में छलकने वाली अमृत की हर बूंद को यहां के नेता और अधिकारी पी जाते है और हमारे हिस्से में आता है *विष* .. चूंकि विष को नीलकंठेश्वर भगवान महाकाल ने पिया था लिहाजा हमें भी उनकी नगरी में रहना है तो ये विष तो पीना ही पड़ेगा … सिंहस्थ महाकुंभ में शिप्रा स्नान करके भले ही हम स्वयं को अमृत से नहाया हुआ समझ ले लेकिन सत्यता तो यह है कि माँ शिप्रा के नाम पर अमृत रूपी मलाई तो कोई और ही खा जाता है यहां भी हमारे हिस्से कुछ नही आता, महाकुंभ के सारे ठेके और काम बाहर से आये नेता, अधिकारी, ठेकेदार जिम जाते है और हमारे हिस्से में आता है सिर्फ भ्रष्टाचार का कलंक रूपी विष, जिसे हम अगले 12 वर्षो तक ढोते है .. काम ये लोग कर के निकल जाते है और बदनाम हम उज्जैन वासी होते है … स्मार्ट सिटी, महाकाल वन, शिप्रा शुद्धिकरण, शिप्रा-नर्मदा लिंक, हाईवे प्रोजेक्ट, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर ऐसे तमाम प्रोजेक्ट और योजनाओं के माध्यम से उज्जैन में करोड़ो के अमृत की वर्षा होती है लेकिन ये सारा अमृत उज्जैनवासियों के हाथ न लगकर बाहरी लोग ही पी जाते है, इस अमृत को बाहरी लोगों में बांटने वाले कोई और नही बल्कि हमारे अपने शहर के नेता और अधिकारी है जो बाहरी लोगों के साथ मिलकर कम्बल ओढ़कर अमृत पी लेते है और जब हम इनकी तरफ आशाभरी निगाहों से देखते है तो ये ऊपरी आदेशो का हवाला देकर हमारी अवहेलना कर देते है, हमारी अपेक्षा भरी निगाहों की ये जमकर उपेक्षा करते है और फिर अचानक से बोरी बिस्तरों में नोट समेटकर दुसरे जिले में निकल लेते है और हम इन्तेजार करते है नए देवताओं का , जो आकर इसी परिपाठी को आगे बढ़ाते है .. इन देवतुल्य नेता अधिकारियों को देखकर कभी कभी मन में विचार आता है कि कहीं सच मे हम असूर ही तो नही है .. वरना तो अमृत के कुछ छीटें हम शहरवासियों पर भी बरसना चाहिए थे , हाँ शहर में कुछ असूर *राहु – केतु* की तरह चालाक जरूर है जो देवताओ की कतार में बैठकर थोड़ा सा अमृतपान कर लेते है लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है शेष तो दिखावटी सुंदरता में ही मदमस्त और खुश है ,हालांकि हम शिव की नगरी में रहते है इस हिसाब से हम शिव के गण भी कहलाते है और शिव के गणों में राक्षस, पिसाच और असुरों की भरमार थी लिहाजा हम भी स्वयं को असुर ही मानकर चले तो बेहतर है, देवता तो सिर्फ यहां के नेता और अधिकारी है ।
कालिदास में भी छलका आयुर्वेद का अमृत ..
जो हाल उज्जैन की जनता का है वही हाल नारद की वंशज कही जाने वाली मीडिया का भी है, कहने को भले ही नारद देवता थे लेकिन उनके वंशजो को आज भी असूर ही समझा जाता है खासकर उज्जैन में तो हर आयोजन में उसकी उपेक्षा होना आम बात है, कालिदास अकादमी संकुल में चल रहे आयुर्वेद महासम्मेलन में महामहिम राष्ट्रपति के आयोजन में मीडिया की जमकर उपेक्षा की गई है, यहां सिर्फ राहु केतु के रूप में एक दो असुरों को बुलाकर आयुर्वेद का अमृत पिलाया गया है ताकि पूरी राक्षस बिरादरी खुद को अमृत में नहाया समझे ले, वो भी सिर्फ इसलिए की कल से सारे असूर बहुत हंगामा मचा रहे थे, यहां से निकलने वाला आयुर्वेद का अमृत भी नेता और अधिकारियों ने पी लिया है अब वही जनता और आयुर्वेद के बीच की धुरी बनेंगे क्योंकि सेतु का काम करने वाली मीडिया की तो आयोजन से दूरी है , आयुर्वेद को बढ़ावा देने, उसका प्रचार प्रसार करने, जनता को आयुर्वेद के फायदे समझाने और आयुर्वेद का लाभ लोगो को पहुंचाने के उद्देश्य से यह समारोह हो रहा था बेहतर होता कि 30-40 वरिष्ठ पत्रकारों, स्थानीय बड़े अखबार के मालिक संपादको को भी इसमें बुलाया जाता तो सम्मेलन में आये हर एक आयुर्वेद महारथी के विचार और रिसर्च जनता तक पहुंचती, महामहिम राष्ट्रपति जी का उदबोधन और विचार तो आप जनसम्पर्क के माध्यम से जारी कर देंगे लेकिन आयुर्वेद के ज्ञाताओं के उद्गार जनता तक कौन पहुंचाएगा, बड़े बड़े विद्वानों के अनुभव कौन साझा करेगा, आयुर्वेद सम्मेलन से निकले अमृत को जनता में कौन बांटेगा । खैर मीडिया को आयोजन से दूर रखने की आपकी अपनी मजबूरी और इच्छा रही होगी लेकिन आपने ऐसा करके सिर्फ मीडिया के साथ ही नही बल्कि शहर और देश के लोगों के साथ भी अन्याय किया है जिसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है, हमें महामहिम को देखने या मिलने की कोई जिज्ञासा नही थी हमें तो बस शहर में हो रहे इस अमृत आयोजन में अपनी कलम से आहुति देने की तमन्ना थी जिसे आप शहर के मठाधीशो ने पूरा नही होने दिया इससे पहले भी उज्जैन में कई राष्ट्र्पति महोदय आये है लेकिन इस बार जो मीडिया की दुर्गती हुई है वो कभी नही हुई इसके लिए आपको एवं हमारे मठाधीशों को भी अनेको प्रणाम।